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Friday 29 December 2023

सियाचिन में भारतीय आर्मी कैसे हैं


लेकिन क्या कभी आपने उन जवानों के बारे में सोचा है जो हड्डियां जमा देने वाली ठंड में देश की रक्षा के लिए खड़े रहते हैं। हम बात कर रहे हैं दुनिया की सबसे ऊंची बैटलफील्ड सियाचिन ग्लेशियर के बारे में जहां जून-जुलाई के महीनों में भी ठंड का कहर ठहरने का नाम नहीं लेता, लेकिन फिर भी देश के जवान तिरंगे की आन बान और शान के लिए हर वक्त के मैदान पर तैनात रहते हैं। 


पर आप फिर वह ऐसा करते कैसे हैं। किस तरह से जीवन बिताते हैं और क्या उन्हें नहाने धोने के लिए पानी मिलता है या नहीं। 

 


करीब 2 किलोमीटर दूर उत्तर में सियाचिन ग्लेशियर जिसकी 77 सियाचिन ग्लेशियर जिसकी कुल लंबाई 77 किलोमीटर है। सियाचिन ग्लेशियर के दांत और ऑरेंज पर भारतीय सेना का वही जगह है जिसे 1984 में ऑपरेशन मेघदूत। जीता जीता जीता था जीता था था दो तो सियाचिन ग्लेशियर का बेस कैंप पर यहां के 110 किलोमीटर लंबे एक्चुअल ग्राउंड 110 किलोमीटर लंबे एक्चुअल ग्राउंड 


पोजीशन को प्रोटेक्ट कर दी में भारतीय सेना की 108 फॉरवर्ड मिलिट्री फोर्स और फॉरवर्ड मिलिट्री फोर्स और आर्टिलरी ऑब्जरवेशन पोस्ट है और है। यह पोस्ट पानापुर 26500 ऊंचाई पर मौजूद है। में भारतीय सैनिकों को पूरे 20 दिनों का वक्त लगता सैनिकों को पूरे 20 दिनों का वक्त लगता है। दोस्तों सियाचिन के सृजन में इंसानों के रहने की सारी सीमाएं खत्म हो जाती है। कभी 


बारिश तो कभी बर्फीला तूफान और अचानक आने वाला हिमस्खलन यह सब कुछ मौत की गुहार लेकर आता है जो यहां रहने वाले जवानों का सबसे बड़ा दुश्मन है। इन समस्याओं से भारतीय जवानों को हर रोज निपटना पड़ता है यानी कि वह हर माता की रक्षा करते हैं। अकड़ सी बात है जब यह जवान देश की रक्षा के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार है। उनकी देखभाल सबसे पहले 


करनी पड़ती है। यह बजे की सेंट्रल गवर्नमेंट इन जवानों को जरूरत की चीजें मुहैया कराने में हर रोज 5 करोड रुपए खर्च करती है तो तो देश की रक्षा के लिए सियाचिन में 10,000 से ज्यादा था नहीं तो यहां हमेशा तैनात रहते हैं और जवान चाहे किसी भी बटन का क्यों ना हो तो यहां पर ड्यूटी देने से पहले कश्मीर के high-altitude वार फेयर। 


कैंप ट्रेनिंग कैंप ट्रेनिंग कैंप ट्रेनिंग कैंप पर कई महीनों तक रहना पड़ता है जहां पर उन्हें आइस क्राफ्ट क्राफ्ट क्राफ्ट क्राफ्ट लाइव स्ट्रीम क्रॉसिंग जैसी चीजों की ट्रेनिंग दी जाती है। रोजाना कड़ी ट्रेनिंग के जरिए सैनिकों के स्टैमिना उपरांत को इनक्रीस किया जाता है ताकि वह सियाचिन के कम ऑक्सीजन लेवल पर अपनी ड्यूटी 


सही से कर सकें, क्योंकि अगर किसी को उठाकर सियाचिन में बिना ट्रेनिंग के तैनात कर दिया जाए तो वह कुछ ही दिनों में मौत के कगार पर पहुंच जाएगा। दुश्मन सेना के जवान उसे बाद में मारेंगे वहां की ठंड से पहले ही अपना शिकार बना लेगी। इसलिए सियाचिन में जाने वाले जवानों की पूरी ट्रेनिंग होती है जहां उनके फैंस 


को तो बढ़ाया जाता ही है उसके साथ-साथ उनके रहने और खाने-पीने के तरीके में सुधार किया जाता है ताकि मुश्किल हालातों में भी वह डटकर खड़े रहे। दोस्तों सियाचिन में तैनात करने से पहले जवानों को खास पोशाक भी जाती है जिसकी कीमत लाखों होती है यह पोशाक आधुनिक। 


दो यार दो यार होती दो यार होती है जो तेज हवा उठ अंड शहीद एक और बड़ी चुनौती है। यहां जवानों के लिए एक और बड़ी चुनौती है। वह बर्फीले पहाड़ों पर चढ़ना जिसके लिए जवानों को खास तरह के जूते भी दिए जाते हैं। इन जूतों में नुकीली कीलें होती है जो ने बर्फ में चलने में 


मदद करती है लेकिन इन सबके बावजूद जवानों को खाने और सोने की बेसिक जरूरतों के लिए बहुत तकलीफ उठानी पड़ती है। सियाचिन ग्लेशियर की फॉरवर्ड हेलीकॉप्टर पर लाया जाता है। पर सुना 1000 फिट की 1000 फिट की ऊंचाई पर एक एक हेलीपैड बनाएंगे लेकिन जब मैं! खराब होता है या फिर जिस पोस्ट 


पर अल्बर्ट नहीं है तो ऐसी स्थिति नहीं खाने की सप्लाई को हवा सही हेलीकॉप्टर के जरिए नीचे छोड़ा जाता है जिसे जवान बर्फ में खोज। 



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